उन्नाव, फरवरी 18 -- 1970 से शुरू श्वेत क्रांति के अग्रणियों ने यह कतई नहीं सोचा होगा कि 55 साल बाद इस अभियान की मुख्य कड़ी यानी कि हम दूधियों के हालात ऐसे हो जाएंगे। घर-घर दूध पहुंचाने और उत्पादन कई गुना बढ़ाने की यह मुहिम तो सफल हो गई, लेकिन हम दूधिये वर्तमान परिस्थितियों के आगे खुद को हारता महसूस कर रहे हैं। बड़ी कंपनियों के चलते मुनाफे में कमी आई पर प्रशासन के खराब रवैये ने हमें अधिक नुकसान पहुंचाया। हर त्योहार पर यह सिलसिला रहता है। आपके अपने अखबार 'हिन्दुुस्तान से दूधियों ने कहा कि हमें दुग्ध मंडी और क्रय केंद्र की सुविधा ही दिला दीजिए। ठिठुरन भरी सर्दी हो या फिर चिलचिलाती गर्मी, चाहे झमाझम पानी ही क्यों न गिर रहा हो। हर मौसम में हाड़तोड़ मेहनत संग सफर तय कर समय पर घर-घर हम दूध पहुंचाते हैं। बड़ी दूध कंपनियों ने हमारे मुनाफे पर कब्जा कर लि...
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