उन्नाव, अप्रैल 25 -- दुकान हो या घर, लकड़ी के फ्रेम पर फंसा कपड़ा, पास बैठे कारीगर, सुईं-धागे से कपड़े पर सितारे, मोती और सीप टांककर खूबसूरत लुक देती उनकी उंगलियां। यह नजारा जिलेभर के गांव और कस्बों में देखने को मिलता है। यहीं से शुरू होता है जरी-जरदोजी (कढ़ाई) का काम। जरी-जरदोजी के रंग-बिरंगे परिधान लोगों का ध्यान खींच रहे हैं, लेकिन कारीगरों को प्रशिक्षण, जरूरी मैटेरियल की कमी पूरी करने के लिए सुगम बाजार की जरूरत है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से जरी-जरदोजी के कारीगरों ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि यह काम अब बहुत महंगा है। काम के हिसाब से रुपये नहीं मिल रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से संचालित एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में जिले की हस्तशिल्प कला जरी-जरदोजी शामिल है। इसे नई ऊंचाइयां तो मिलीं, लेकिन अभी भी इसके कामगा...