उन्नाव, मार्च 20 -- लोकमंगल की कामना करने वाले पुजारियों और सेवकों के दिन कब बहुरेंगे। कब तक चढ़ावे से घर-गृहस्थी की गाड़ी खींचेंगे-ये प्रश्न अनुत्तरित हैं। भोजन, बच्चों की पढ़ाई-दवाई और अन्य जरूरी खर्च जुटाने में उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। इसके बावजूद प्रशासन को उनकी फिक्र नहीं है। यहां तक कि बेटे-बेटियों की शादी में भी उन्हें कोई सहयोग नहीं मिलता है। बहरहाल, भगवान पर उनका अटूट विश्वास है, उन्हें भरोसा है कि एक न एक दिन शासन-प्रशासन उनकी सुध लेगा। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से पुजारियों ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि हम लोगों को प्रतिमाह एक निश्चित मानदेय मिलना चाहिए ताकि आसानी से घर-गृहस्थी चला सकें। हर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक करीब दस हजार पुजारी और आचार्य मौजूद हैं। इनमें अधिकतर पुजारी मंदिरों में पूजा-पाठ के साथ...