आगरा, मई 1 -- आगरा। 21वीं सदी में दुनिया चांद तक पहुंच गई है। इंटरनेट की एआई तकनीक से क्रांति मची हुई है। इस तरक्की के बीच अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है दिहाड़ी मजूदरों की जिंदगी। रोजाना सुबह छह बजे से मजदूरों की भीड़ मंडियों में पहुंच जाती है। काम मिलता है तो ठीक वरना मायूस होकर घर लौट जाती है। काम मिलने के इंतजार में सड़क किनारे खड़े मजदूरों ने संवाद कार्यक्रम में अपनी परेशानियां बयां कीं। बताया कि रोजाना काम नहीं मिलता है। उनके परिवार की जिंदगी मुश्किल हालात में कट रही है। फीस के रुपये नहीं है तो बच्चे स्कूल नहीं जाते। मजदूरों ने सरकार से मदद का मरहम लगाने की गुहार लगाई है। एक मई का दिन अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहने को ये दिन मजदूरों के नाम समर्पित है। मगर मजदूर इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते। वजह ये है ...
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