लखनऊ, जून 3 -- कशिश आर्टस एण्ड वेलफेयर सोसाइटी की ओर से आयाजित तीन दिवसीय नाट्य समारोह प्रेमचन्द रंगोत्सव की दूसरी शाम बूढ़ी काकी का मंचन किया गया। अन्तरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान प्रेक्षागृह में रत्ना अग्रवाल के निर्देशन में मंचित नाटक में विश्वासघात और कृतज्ञता को केन्द्र रखा गया। कहानी के केन्द्र में बूढ़ी काकी है। काकी के पति एवं बच्चों की असमय मृत्यु हो जाती है। अथाह सम्पत्ति की मालकिन काकी को उनका भतीजा बुद्धिराम सहारा देता है। पहले तो बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा काकी की सेवा सतकार में लगे रहते हैं फिर एक दिन शहरी मैडम से मिल कर काकी की सारी सम्पत्ति बेच देते हैं। बाद में जब बूढी काकी को घर से निकाला जाता है तो वहीं शहरी मैडम कहती है कि बुद्धिराम तुम मुझे पहचान नहीं पाये मैं गांव के ही गरीब मोची की बेटी हूं। मुझे काकी ने ही पढ़ाया ल...