बिजनौर, जून 30 -- रिश्ते इतने नाजुक मोड़ पर पहुंच चुके हैं कि जरा सा दबाव जिंदगी की डोर को छोड़ रहा है। बुढ़ापे की बैसाखी माने जाने वाले बेटे परिवार का जरा भी बोझ नहीं संभाल पा रहे हैं। गुस्सा इतना हावी हो गया है कि नौजवान आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं। बुढ़ापे के सहारे के लिए अक्सर हर परिवार में एक बेटे की चाह जरूर होती है। परिवार में बड़ा बेटा पहले हो जाए तो परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता है। कई बार परिवारों में बेटियां जन्म ले लेती हैं। फिर भी परिजनों में बेटे की चाह बलवती रहती है। अक्सर मां-बाप की कोशिश रहती है कि उनके बुढ़ापे का सहारा, अगर घर किलकारी लगाते हुए आ जाए तो जीवन खुशियों से भर जाएगा। लेकिन जब यह बेटे बड़े होते हैं तो परिवार इनके अनुसार चलना शुरू हो जाता है। कई बार बुढ़ापे की बैसाखी मा...