नई दिल्ली, अक्टूबर 25 -- सर्वप्रथम बिहार के चुनावी समर में जूझ रहे राजनेताओं से एक अनुरोध। कृपया वे इस कॉलम में चुनावी गुणा-गणित खोजने का नाहक कष्ट न करें। अगली पंक्तियों में बिहार के बड़े बदलाव के साथ उसकी अखंड पीड़ा और उससे उपजे आर्तनाद दर्ज हैं। पिछली सदी की आखिरी दहाई से शुरू करते हैं। हम तीन सहयोगी पटना से धनबाद जा रहे थे। बीच जाड़े की मरियल धूप में सड़क से कुछ दूर एक विचलित करने वाला दृश्य दिखाई दिया। हाड़ कंपकंपाती हवा में सिर्फ पतली सी धोती तन पर लपेटे एक महिला कीचड़ से भरे तालाब में नहाने के लिए प्रयासरत थी, लेकिन उसे उसकी शर्म रोक रही थी। क्यों? उसके पास बदलने को धोती नहीं थी और सड़क पर आती-जाती गाड़ियों में बैठे लोग उसे अमर्यादित भाव से देख सकते थे। मैं उसकी हिचकिचाहट को सम्मानपूर्वक समझ रहा था कि तभी उसने एक ऐसी हरकत की, जो हमारे विचल...