नई दिल्ली, नवम्बर 4 -- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बायोमीट्रिक हाजिरी प्रणाली की शुरुआत सभी हितधारकों के फायदे के लिए है। अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रणाली की शुरुआत को सिर्फ इसलिए अवैध नहीं ठहराया जा सकता कि इसे लागू करने से पहले सरकारी कर्मियों से परामर्श नहीं किया गया। न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से 2015 में दायर वह अर्जी मंजूर कर ली, जिसमें उड़ीसा हाईकोर्ट के 21 अगस्त 2014 के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था कि बायोमीट्रिक हाजिरी प्रणाली (बीएएस) शुरू करने वाले परिपत्र कर्मचारियों के साथ परामर्श के बिना जारी किए गए थे और ये केंद्र सरकार के कार्यालयों की स्थापना और प्रशासन से जुड़ी पूर्ण नियमावली के अनुरूप नहीं थे। पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और प्रधान...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.