नई दिल्ली, जुलाई 19 -- बच्चे की परवरिश कोई बच्चों का खेल नहीं। उसमें समय, उत्साह, ललक के साथ-साथ एक चीज की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है- और वह है तजुर्बा। जो बच्चे की मां को मिलता है घर के बुजुर्गों से यानी दादा-दादी, नाना-नानी से। बच्चा रात भर रोता क्यों है? वह भर पेट दूध तो पी रहा है? वह कब चलेगा? उसके दांत कब निकलेंगे? नए अभिभावक के मन में उमड़ रहे ऐसे तमाम सवालों के जवाब दादी-नानी के पास पहले से मौजूद रहते हैं। अफसोस की बात है कि आजकल सभी बच्चों को दादी-नानी या संयुक्त परिवार का साथ नहीं मिल पाता। नतीजा, माता-पिता अकेले ही बच्चे की परवरिश करने के लिए मजबूर हैं। आंकड़े भी इसकी तसदीक करते हैं। भारत में 2022 तक पचास फीसदी परिवार एकल हो चुके हैं। शहरी क्षेत्रों में 88 फीसदी एकल परिवार हैं, जो बुजुर्गों के आशीर्वाद से महरूम हैं। ऐसे में परवर...