नई दिल्ली, फरवरी 7 -- नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने 3 तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची से सामूहिक दुष्कर्म करने के मामले में आरोपियों को बचाव का पर्याप्त मौका दिए बगैर दोषी ठहराकर दी गई फांसी की सजा को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि वैज्ञानिक विशेषज्ञों की गवाही/परीक्षण किए बगैर सिर्फ डीएनए रिपोर्ट पर भरोसा करने से न सिर्फ न्याय की विफलता हुई बल्कि इससे मुकदमे की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई। जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने आरोपियों को दी गई फांसी की सजा को रद्द करते हुए, इस मामले को दोबारा से सुनवाई के लिए निचली/विशेष अदालत में भेज दिया है। पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि 'तथ्यों से जाहिर होता है कि मामले में आरोपियों को अपना बचाव करने का पर्याप्त मौका दिए बगैर 2 माह से भी कम समय मे...