मैनपुरी, मार्च 9 -- एक समय था जब ग्रामीण क्षेत्रों में एक माह पहले से ही होली संगीत शुरू हो जाता था। अब इस परंपरा को डीजे का ग्रहण लग गया है। अब न ही ढोलक की थाप सुनाई देती है और न कीचड़ की होली दिखाई देती है। होली गाने वाले लोग रात-रात भर ढोलक की थाप पर होली गाया करते थे। तब लगता था कि होली का त्योहार व भारत की परंपरा जीवित है लेकिन अब हालात बदल चुके है। किशनी निवासी आरबी सिंह चौहान, पदमपुर निवासी सुरेंद्र यादव बताते हैं कि शाम ढ़लते ही होली गीत गाने वालों की टोली जुटती थी। देर रात तक गीत, गाने का दौर चलता था। देवी-देवताओं पर आधारित होली गीत गाए जाते थे। बुजुर्ग, युवा व बच्चे एक साथ बैठते थे। यहां तक कि एक परिवार के लोग साथ में होली गीत गाते थे। महिलाएं भी गीत सुनने के लिए पहुंचती थीं। अभी भी ग्रामीण इलाकों में कुछ जगहों पर परंपरागत गीत की...