शाहजहांपुर, अप्रैल 10 -- गांव के लोगों को गांव में रोजगार और गांव की तरक्की- विकास को 2005 में शुरू की गई, मनरेगा योजना पिछले कुछ सालों से धरातल पर गायब होकर कागजों तक सीमित होते दिख रही है। जिससे मजदूरों को मनरेगा से मोहभंग हो रहा है। वही ग्राम प्रधान लोग भी मनरेगा में समय से बजट न मिलने से कामकाज कराने में हाथ पीछे खींच रहे हैं। राज्य क्या जिला पूरे देश में मनरेगा जैसे महत्वपूर्ण विभाग में बजट का टोटा पड़ा हुआ है, जिससे वेतन भत्ते, मैटेरियल व मजदूरों की मजदूरी भी समय से मिलने के लाले पड़े हुए हैं। मनरेगा बेबसाइट पर आईडी की रिपोर्ट के आंकड़ों की माने तो उक्त योजना 34 राज्यों में चलाई जा रही है, जिसमें 1 दिसंबर 2024 से मैटेरियल, प्रशासनिक मद में बजट नहीं आ रहा है। मैटेरियल का बजट 23 हजार 561 करोड़ रुपये बकाया चल रहा है। इसमें 817.76 करोड़ रुपए...
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