प्रयागराज, मार्च 6 -- सत्ता का विरोध करो तो वह प्रतिबन्ध लगा देती है। खासतौर पर अ -लोकतान्त्रिक सत्ताओं का तो यह प्यारा शगल है। भारत में ब्रिटिश-राज के दौरान असंख्य पत्र -पत्रिकाओं पर प्रतिबन्ध लगा था। उनका अध्ययन किया जाय तो यह प्रमाणित होता है कि वे व्यापक मानवीय सरोकारों से जुड़ी हुई थीं। ये बातें हिंदी प्रो. संतोष भदौरिया ने अपनी प्रकाशित पुस्तक 'अंग्रेजी राज और हिंदी की प्रतिबंधित पत्रकारिता' पर जस्ट मीडिया फाउंडेशन के साथ बातचीत में कहीं।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित...