नई दिल्ली, अक्टूबर 15 -- प्रेम दुस्साहस है। वह ऐसी छलांग है, जिसमें तुम कल का विचार नहीं करते। जब तुम जाते हो, तो पूरे ही साथ जाते हो, या फिर नहीं जाते, क्योंकि आधा-आधा क्या जाना? ऐसे तो तुम्हीं कटोगे और मुश्किल में पड़ोगे। जैसे आधा शरीर तुम्हारा मेरे साथ चला गया और आधा घर रह गया। ऐसे में तो तुम्हीं कष्ट पाओगे। मेरा इसमें कोई हर्ज नहीं है। लेकिन तुम्हीं दुविधा में रहोगे। या तो पूरे घर रह जाओ या फिर पूरे मेरे साथ चल पड़ो। जरा सी भी मांग हो, तो खंडित हो गए। तुमने कभी ख्याल किया? जहां भी मांग आती है, वहीं तुम छोटे हो जाते हो। जहां मांग नहीं होती, सिर्फ दान होता है, वहां तुम भी विराट होते हो। जब तुम्हारे मन में कोई मांगने का भाव ही नहीं उठता, तब तुममें और परमात्मा में क्या फासला है? इसलिए तो बुद्ध पुरुषों ने निर्वासना को सूत्र माना कि जब तुम्...