मधुबनी, मार्च 2 -- शहर में कसेरा समाज के करीब 150 से अधिक घर हैं। इनमें से अधिकतर परिवार कभी कांसा बर्तन बनाने के पेशे में सक्रिय थे। अब हालात इतने खराब हो चुके हैं कि बहुत से परिवारों ने यह व्यवसाय छोड़ दिया है। बढ़ती महंगाई, पूंजी की कमी और मजदूरों की घटती संख्या ने इस पारंपरिक पेशे की कमर तोड़ दी है। स्थानीय निवासी उदय कसेरा बताते हैं, सरकार की बेरुखी के कारण इस समाज की हालत इतनी खराब हो गई कि अधिकतर लोगों को पुश्तैनी धंधा छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। बैंक से लोन नहीं मिलता। इस कारण धन की कमी के कारण फैक्ट्रियां बंद हो गईं। इसके बाद 12 प्रतिशत टैक्स ने तो हमारी कमर भी तोड़ दी है। स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा काम कांसा के बर्तन बनाने में कई चरण होते हैं, जिनमें धातु गलाना, उसे आकार देना, पीटना और पॉलिश करना शामिल है। इस प्रक्रिया में निकलने...