किशनगंज, नवम्बर 1 -- दिघलबैंक । एक संवाददाता आज जहां चुनाव प्रचार में सोशल मीडिया, डिजिटल पोस्टर, ड्रोन कैमरा और बड़े-बड़े मंचों का बोलबाला है, वहीं 1960970 के दशक में भारत में चुनाव प्रचार पूरी तरह जनसंपर्क और आपसी भरोसे पर आधारित हुआ करता था। उस दौर में न तो मोबाइल थे, न टीवी चैनल, न ही आधुनिक प्रचार वाहन। फिर भी उम्मीदवार और जनता के बीच का रिश्ता कहीं अधिक आत्मीय और मजबूत था। दिघलबैंक प्रखंड के धनतोला गांव निवासी गौरी शंकर त्रिमूर्ति, जिनकी उम्र 73 वर्ष है, उस दौर की यादें साझा करते हुए कहते हैं पहले के समय में तो चुनाव प्रचार महीनों चलता था। उम्मीदवार गांव-गांव, कस्बों और शहरों का दौरा करते थे। खुले मैदानों, स्कूलों के आंगन या पंचायत भवनों में जनसभाएं होती थीं। लाउडस्पीकर और माइक का बहुत सीमित उपयोग होता था, कई बार तो नेता बिना माइक के ...