देवघर, जुलाई 30 -- देवघर/डॉ. मोतीलाल मिश्र चौरासी लाख योनियों में करोड़ों बार जन्म लेकर, पाप रहित होने पर ही प्राणी भगवान शिव की भक्ति अर्चना कर सकता है। प्रारब्ध के अच्छा होने पर ही उसको सब साधन प्राप्त होता है और जगत के कारणभूत शिव में उसकी अनन्य भक्ति हो जाती है। भगवान शिव की भक्ति तीन प्रकार से बतायी गयी है। मानसिक वाचिक और कायिक। लौकिकी, वैदिकी और आध्यात्मिकी ये तीन भेद और हैं। मानसिक :- ध्यान, धारणा और बुद्धि के द्वारा शिव के स्वरूपों का स्मरण मानसी भक्ति कहलाती है। वाचिक :- स्तुति और कीर्त्तन आदि वाचिकी भक्ति कहलाती है। कायिक :- इंद्रियों को संयम में करके जो व्रत, उपवास और नियम आदि का पालन किया जाता है, वह भक्ति कायिक कहीं जाती है। लौकिकी :- गंगाजल, विल्वपत्र, पंचोपचार, षोड्शोपचार, राजोपचार, नृत्य, वाद्य, गीत, भक्ष्य, भोज्य, अनुपान,...