नई दिल्ली, नवम्बर 1 -- सुधीश पचौरी, हिंदी साहित्यकार कोई तीन महीने पहले की बात होगी। एक दिन फोन आया, 'यार! मुझे कल धमकी मिली है। डर लग रहा है कि साले वाकई कुछ कर न डालें।' मैंने चुटकी ली, 'अब जाकर तू नामी लेखक बना, तेरा भविष्य उज्ज्वल है बेटे!' वह बोला, 'यार, मेरी बात को सीरियसली लो। मेरी जान पर बनी है और तुम मजा ले रहे हो।' मैं सीरियस, 'क्या पुलिस थाने गए? धमकी की रिपोर्ट लिखवाई?' 'क्या लिखाऊं? धमकी 'ओरल' थी। पुलिस तो नाम पूछती है, लेकिन धमकी वाले ने नाम बताया ही नहीं। बड़ा डर लग रहा है। बाल-बच्चे, सब परेशान हैं।' 'जिस नंबर से धमकी आई है, वो तो फोन में होगा उसी को दे देते।' वह बोला, 'लेकिन दूं कैसे? उसने कहा है कि अगर पुलिस-वुलिस की, तो फिर देख लेना। अभी तो सिर्फ धमकी ही दे रहा हूं। अगली बार एक्शन ही होगा।' 'पूछा नहीं कि आखिर बात क्या है...
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