नई दिल्ली, जून 18 -- मनुष्य प्रश्न नहीं, बल्कि एक निरंतर खोज है। एक प्रश्न तो बुद्धि द्वारा हल किया जा सकता है, लेकिन एक खोज का समाधान अस्तित्वगत रूप से ही किया जाना है। ऐसा नहीं है कि हम कुछ प्रश्नों के उत्तर खोज रहे हैं, यह कुछ ऐसा है कि हम अपने अस्तित्व के लिए कुछ उत्तर खोज रहे हैं। सदियों से मनुष्य अपनी ही खोज कर रहा है। वह जानता है कि वह है, लेकिन वह यह भी जानता है कि उसे नहीं मालूम, वह कौन है? इसलिए जन्म लेने के साथ ही उसके आंतरिक गहनतम केंद्र में एक महान प्रश्न उठना शुरू हो जाता है। हम इस उठने वाले प्रश्न या खोज को दबा सकते हैं, उस खोज की दिशा बदल सकते हैं, लेकिन उसे मार नहीं सकते। उसको मार देने या समाप्त कर देने का कोई उपाय ही नहीं है, क्योंकि वह मनुष्य की सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति में अंतर्निहित है। यह जानने की खोज उसकी चेतना में अ...