नई दिल्ली। हेमलता कौशिक, मई 24 -- दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कोई भी व्यक्ति लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के खर्च के नाम पर अपनी कानूनी पत्नी को गुजाराभत्ता देने से नहीं बच सकता। पति की पहली जिम्मेदारी अपनी कानूनी पत्नी का भरण-पोषण करना है। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेनू भटनागर की बेंच ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत पति को निर्देश दिया है कि वह पत्नी को निचली अदालत द्वारा तय गुजाराभत्ता रकम का भुगतान करे। प्रोफेसर को पिछले छह साल के गुजाराभत्ता रकम की भरपाई पत्नी को करनी है। दरअसल, इस मामले में प्रोफेसर की दलील थी कि वह तकरीबन 62 हजार रुपये महीने अपनी लिव-इन पार्टनर और उसके तीन बच्चों के जीवन-यापन के लिए देता है। ऐसे में उसकी आर्थिक स्थिति पत्नी के बकाया गुजाराभत्ते की भरपाई करने की नहीं है...