सुपौल, जून 3 -- त्रिवेणीगंज, निज संवाददाता। कबड्डी जो कभी गांव-गांव की मिट्टी में रचा बसा खेल था, आज पहचान और प्रोत्साहन के अभाव में हासिये पर पहुंच गया है। प्रखंड क्षेत्र के कई गांव में जहां पहले शाम ढलते ही कबड्डी के मैदान गुलजार हो जाया करते थे, अब वहां सन्नाटा पसरा रहता है ना तो खिलाड़ियों को अभ्यास के लिए मैदान उपलब्ध है, ना प्रशिक्षण की सुविधा और ना ही खेल से जुड़ा कोई स्थाई मंच। ऐसे में प्रतिभाएं या तो दम तोड़ रही हैं या किसी बेहतर अवसर की तलाश में संघर्षरत है। युवा खिलाड़ियों का उत्साह प्रशासनिक उपेक्षा, संसाधनों की कमी और सामाजिक समर्थन के अभाव में धीरे-धीरे खत्म हो रही है। इसके साथ ही ग्रामीण इलाकों में कबड्डी के लिए प्रशिक्षित कोच की कमी है, जो इस खेल के विकास में एक बड़ी बाधा साबित हो रही है। अधिकांश गांव में युवा खिलाड़ियों को पर्य...