श्री श्री रविशंकर, मई 13 -- मन हमेशा विषय-वस्तुओं से बने इस संसार की ओर भागता रहता है। तुम यदि शांत बैठे हो, आंखें खुली हों या बंद हों, देखो, तुम्हारा मन कहां जाता है? तुम्हारा मन कुछ देखने के लिए भागता है, तुम कोई दृश्य, किसी व्यक्ति को देखना चाहते हो। इसी तरह मन कुछ सूंघने, स्वाद लेने, सुनने अथवा स्पर्श करने के लिए अथवा कोई पढ़े-सुने विचार की ओर भागता रहता है। ऐसे किसी भी अनुभव की चाह तुम्हे वर्तमान क्षण में नहीं रहने देती है। कुछ क्षण के लिए ही सही, तुम कहो कि चाहे कितना भी सुंदर दृश्य क्यों न हो, मेरी उसे देखने में कोई रुचि नहीं है, कितना भी स्वादिष्ट भोजन क्यों न हो, अभी समय नहीं है और मेरी खाने में अभी कोई रुचि नहीं है, कितना ही सुंदर संगीत क्यों न हो, अभी इस समय मुझे सुनने में भी कोई आसक्ति नहीं है, कितना भी सुंदर स्पर्श क्यों न हो...