सहरसा, फरवरी 17 -- सहरसा। रविवार को गायत्री शक्तिपीठ में व्यक्तित्व परिष्कार का आयोजन हुआ। सत्र को संबोधित करते हुए डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल ने कुंभ के आध्यात्मिक महत्व को बताते हुए कहा-देव और असुर के सागर मंथन के फलस्वरूप जो अमृत कलश निकला उससे जो अमृत छलका वह हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक में गिरा। वहीं पर कुंभ स्नान की परम्परा शुरु हुई। कुंभ मतलब घड़ा, कलश को हीं कुंभ कहते हैं। उन्होंने कहा-कुंभ मेला का आयोजन खगोलीय घटनाओं के आधार पर होता है। कुंभ मेला का स्थान तय करने में ,सूर्य, चन्द्रमा,बृहस्पति ग्रहों की भूमिका महत्वपूर्ण निभाती है। वैसे तो प्रत्येक कुंभ दिव्य और पवित्र होता है,पर महा कुंभ अपने भव्यता को भी समेटे हुए होता है। कुंभ तो साधु सत्संग का बड़ा आयोजन है। लेकिन आज सत्संग कहां रह गया है। जब सत्संग ही नहीं तो उदेश्य भी...
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