नई दिल्ली, अक्टूबर 20 -- दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मकान मालिक अपनी जरूरतों का सबसे अच्छा जज होता है। कोर्ट की राय के आगे उसे झुकाया नहीं जा सकता और ना ही किरायेदार या कोर्ट उसकी जरूरतों का आकलन कर सकते हैं। जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा कि एक बार जब मकान मालिक यह साबित कर देता है कि जिस संपत्ति से वह किरायेदार की बेदखली चाहता है, उसे उसकी जरूरत है तो वैकल्पिक घर की उपलब्धता का मुद्दा केवल आकस्मिक रह जाता है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने कहा कि इसके अलावा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए घऱ का चयन करना मकान मालिक का विशेषाधिकार है, जो उसके व्यक्तिपरक मूल्यांकन पर आधारित है। अपनी जरूरतों का सबसे अच्छा जज होने के नाते मकान मालिक पर किरायेदार या अदालत की राय थोपी नहीं जा सकती।मकान मालिकों ने की थी किरा...