नई दिल्ली, जून 19 -- हमारी प्रगति के ऐतिहासिक चक्र के दौरान सार्वभौम शांति और सद्भाव का धार्मिक सिद्धांत आत्मसात करने में मानव जीवन एक क्षण के लिए भी कभी सफल नहीं रहा, जबकि बिना सार्वभौम और संपूर्ण पारस्परिक सद्भाव के वास्तविक शांति हो नहीं सकती। अभी भी संघर्षशील हितों के बीच निबाह लेने की एक व्यवस्था की संभावना के आगे हमने कोई वास्तविक प्रगति नहीं की है, जिससे संघर्ष के निकृष्टतम स्वरूप की पुनरावृत्ति को कम किया जा सके। इस सिद्धि के लिए जो प्रणाली, जो रास्ता मानवता को स्वयं अपने स्वभाव से बाध्य होकर अपनाना पड़ा है, वह है भयानक परस्पर कत्लेआम, जो इतिहास में बेमिसाल है; सार्वभौम शांति को स्थापित करने के लिए आधुनिक मानव ने जो रास्ता और विजयी साधन खोज निकाला है, वह है कड़वाहट और घृणा से भरा सार्वभौम युद्ध!... ऐसा दिन आएगा और निश्चित रूप से आ...