संभल, अगस्त 30 -- गरीबी में जन्मा, उम्मीदों से पला और सपनों के सहारे बड़ा हुआ एक नाबालिग बेटा दयाराम। आज तौहीद अहमद के नाम से जाना जा रहा है। कभी परिवार की आंखों का तारा दयाराम अब उन्हें पहचानने तक से इनकार करता है। परिजनों का आरोप है कि उसे मकान और दुकान का लालच देकर मजहब बदलवा दिया गया है। शुक्रवार को संभल में इस मामले को लेकर दिल्ली से आई टीवी चैनल की टीम के बाद क्षेत्र में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। बात 2007 की है, 17 साल की उम्र में रोज़ी-रोटी की तलाश में घर से निकले दयाराम की कहानी, एक कपड़े की दुकान से शुरू होकर मियां सराय के मदरसे में खत्म नहीं हुई, बल्कि वहीं से उसकी नई पहचान की शुरुआत हो गई। भाई सोनू का का दावा है कि मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने दयाराम को दुकान पर रखा। बाद में बहलाया-फुसलाया, उसे 'सच्ची पहचान का झांसा देकर म...