प्रयागराज, जुलाई 30 -- राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय और केंद्रीय राज्य पुस्तकालय की ओर से बुधवार को पुस्तकालय के सभागार में 'शोध कार्यों में पांडुलिपियों का महत्व विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. बनमाली विश्वाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा को विशेष महत्व दिया गया है। इस परंपरा का मूल आधार हमारे पांडुलिपि ग्रंथ ही हैं। इसलिए आज के समय में पांडुलिपियों का अध्ययन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है। लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के डॉ. फाजिल हाशमी ने कहा कि पांडुलिपि को उर्दू में मखतूता कहते हैं। हमें अपने संचित ज्ञान को बढ़ाने के लिए निरंतर पांडुलिपियों का अध्ययन करना चाहिए। प्रो. अनिल कुमार गिरि ने कहा कि मनुष्य की पीढ़ी दर पीढ़ी अध्ययन अध्ययन में जो भ्रांति है, उन्...