नई दिल्ली, सितम्बर 30 -- याज्ञवल्क्य ब्रह्मज्ञानी थे। उनके ज्ञान की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। बड़े-बड़े राजा और संत-महात्मा उपदेश ग्रहण करने के लिए उनके पास आया करते थे। वे बिना किसी भेदभाव के सबको उपदेश देते थे। महाराज जनक भी उनका उपदेश सुनने के लिए उनके आश्रम में आते थे। याज्ञवल्क्य राजा जनक का बहुत आदर करते थे। वे जब तक सभा में नहीं पहुंच जाते, याज्ञवल्क्य उपदेश आरंभ नहीं करते थे। उपदेश देते समय भी वे जनक की ही ओर देखा करते थे। जनक के प्रति याज्ञवल्क्य के अधिक झुकाव को देखकर ऋषियों-मुनियों के मन में विकार पैदा हो गया। वे मन-ही-मन सोचने लगे, 'याज्ञवल्क्य महान ज्ञानी हैं। वेदों-उपनिषदों पर उपदेश देते हैं, फिर भी छोटे-बड़े का भेद करते हैं। जब तक जनक नहीं आ जाते, वे उपदेश आरंभ नहीं करते। वे जनक का आदर भी हम सबसे अधिक करते हैं। जनक के र...