मुनि जयकुमार, मई 6 -- आत्म-रमण की अवस्था सहजानंद की अवस्था है। अपने सहज-स्वरूप में अवस्थित होना परमानंद की उत्कृष्ट अवस्था है। हम आत्म-ज्ञान के द्वारा ही परम सुख की अनुभूति कर सकते हैं। आत्म-ज्ञान अंत: स्थल को स्पर्श करने वाला ज्ञान है। जब तक हम अपनी आत्मा से परिचित नहीं हैं, तब तक परम सुख को भी प्राप्त नहीं कर सकते। जीवन में आत्म-ज्ञान का होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। जिस व्यक्ति ने आत्म-ज्ञान को प्राप्त कर लिया है वह सदा परमानंद की स्थिति में रहता है। कहा गया है कि आत्मा को जान लेने के पश्चात कुछ भी जानना और शेष नहीं रहता। यदि आत्मा को न जाना गया तो शेष प्राप्त किया हुआ ज्ञान भी निष्फल ही समझना चाहिए। वर्तमान में व्यक्ति पदार्थजनित ज्ञान में दक्ष है। व्यक्ति का सारा ज्ञान पदार्थ से जुड़ा हुआ है इसलिए वह आत्म-ज्ञान से वंचित है। एक अज्ञानी आ...
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