नई दिल्ली, मई 17 -- 'ऑपरेशन सिंदूर' की सफलता के बाद सीमावर्ती इलाकों में अमन की वापसी हो चुकी है। यही वह वक्त है, जब हमें जीत के जोश और जज्बे के पीछे दुबकी परछाइयों पर ध्यान देना होगा। इनके सीने में गौरतलब सवाल कसमसा रहे हैं। भारतीय इतिहास के हाशियों में दर्ज पुरागाथाएं गवाह हैं कि उनकी शताब्दियों तक अनदेखी की गई। ईसा पूर्व 326 से 1962 तक विदेशी आक्रमणकारी इसीलिए हमारे जान-माल की कीमत पर जीत का जश्न मनाते रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रीति-नीति के आलोक में हमें अब पराक्रम और सामरिक सफलता के फर्क को सदा-सर्वदा के लिए मिटाने की कोशिशें शुरू कर देनी चाहिए। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? याद करें। वर्ष 1971 में हमने पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटने में सफलता अर्जित की। इस महाविजय के 28 साल बाद भारत ने नया कीर्तिमान रचा। इस बार कारगिल की प्रा...