जौनपुर, मार्च 13 -- जौनपुर, संवाददाता। जौनपुर प्राचीन काल में यमदग्निपुरम और मध्यकालीन शर्की सल्तनत काल में शीराज-ए-हिन्द के नाम से मशहूर था। यहां के कवियों-शायरों के साथ साथ होली के रंग में साझा संस्कृति और कौमी एकता का रंग हमेशा प्रभावी रहा है। पड़ोस में काशी तीर्थ होने के नाते यहां के होली की मौज में काशी का असर हमेशा दिखाई पड़ता है। कोतवाली चौराहा पर आज भी होली पर हिन्दू-मुस्लिम मिलकर कार्यक्रम करते हैं। चौदहवीं सदी में हुसैन शाह शर्की ने राग दरबारी की रचना की तो कवि व शायर होली की मस्ती का दरबार लगाया करते थे। कालान्तर में परिवर्तन होने के बाद अब यह परम्परा होली मिलन समारोह में तब्दील हो गई है। हुसैन शाह शर्की के दरबार में उन्ही का लिखा होरी गीत बिरज में होली खेलैं रंग रसिया, राधे कान्ह एक रंग रंगि गयो नील रतन मन बसिया... संगीत की धुन ...