मुजफ्फरपुर, अगस्त 7 -- मुजफ्फरपुर। बागमती के 28 घाटों पर 14 गांवों की करीब एक लाख की आबादी को नदी पार कराने वालों का जीवन खुद मझधार में है। जैसे-जैसे नदी का पानी घटता है, वैसे-वैसे नाविकों के मुंह का निवाला कम होने लगता है। अंचल कार्यालय से महज सात दिन का परवाना मिलता है, उसके बाद बाढ़ की स्थिति रहने पर ही यह दोबारा जारी हो सकता है। कड़ी मशक्कत के बाद परवाना मिल भी जाए तो मेहनताना के लिए सालभर इंतजार करना पड़ता है। बागमती में पानी बढ़ने पर जब चचरी पुल बह जाता है तो तीन महीने नाव ही आने-जाने का सहारा होती है। बच्चों की पढ़ाई से लेकर बीमार की दवाई तक इसी पर आश्रित हो जाती है। नाविकों को स्थानीय लोगों से भाड़ा नहीं मिलता, सरकारी परवाना ही जीविका का जरिया है। सालों से रोजी-रोटी का संकट झेल रहे नाविकों का कहना है कि हमलोगों को भी मनरेगा की तरह...