नई दिल्ली, अक्टूबर 30 -- दशकों पहले हिंदी के मशहूर कवि सुदामा पांडेय 'धूमिल' ने लिखा था, लोहे का स्वाद/ लोहार से मत पूछो/ उस घोड़े से पूछो/ जिसके मुंह में लगाम है। इसी तरह, प्रदूषण की पीड़ा नीति-निर्धारकों से नहीं, उन लोगों से पूछिए, जो खांसते-खांसते बेदम हो जाते हैं और आखिरकार कई के फेफड़े-हृदय उनका साथ देना बंद कर देते हैं। विडंबना यह है कि इनमें से ज्यादातर उस गलती की सजा भुगतने को अभिशप्त हैं, जो उन्होंने नहीं की। प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका लैंसेट ने अपनी ताजा रिपोर्ट में जो दावा किया है, वह न सिर्फ भयावह है, बल्कि बेहद दर्दनाक भी है। 'द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ ऐंड क्लाइमेट चेंज 2025' रिपोर्ट बता रही है कि साल 2022 में भारत में 17 लाख से अधिक लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई। लैंसेट की रिपोर्ट ही नहीं, अलग-अलग वर्षों में विभिन्न ...