नई दिल्ली, अक्टूबर 9 -- मैं एक छोटे से गांव में गया था। वहां एक नवनिर्मित मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठा का समारोह चल रहा था। सैकड़ों पुजारी और संन्यासी इकट्ठे हुए थे। हजारों देखने वालों की भीड़ थी। धन मुक्त-हस्त से लुटाया जा रहा था। और सारा गांव इस घटना से चकित था, क्योंकि जिस व्यक्ति ने वह मंदिर बनवाया था और इस समारोह का आयोजन किया था, उससे ज्यादा कृपण व्यक्ति कोई और हो सकता है, यह सोचना भी उस गांव के लोगों के लिए कठिन था। वह व्यक्ति कृपणता की साकार प्रतिमा था। उसके हाथों एक पैसा कभी छूटते किसी ने नहीं देखा था। फिर उसका यह हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? यही चर्चा और चमत्कार सबकी जुबान पर था। उस व्यक्ति के द्वार पर कभी भिखारी नहीं जाते थे, क्योंकि वह द्वार केवल लेना जानता था। देने से उसका कोई परिचय ही नहीं था। फिर यह क्या हो गया था? जो उस व्यक्ति ...
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