नई दिल्ली, नवम्बर 23 -- दुनिया में एक भी ऐसी संस्कृति नहीं है, जो छुट्टियों की सार्थकता पर सवाल उठाए। दरअसल, लोग छुट्टियों का इंतजार करते हुए काम करते हैं। आखिर वे कौन से पहलू हैं, जो रोज के कामकाज को बोरियत, तनाव, थकान से भर देते हैं? उनमें सबसे अहम यह है कि आप जो काम कर रहे हैं, उससे आपको प्रेम नहीं है। फिर चाहे स्त्रियां घर का काम कर रही हों या पुरुष दफ्तरों व दुकानों में काम कर रहे हों। हर कोई एक बोझ ढो रहा है! दूसरे, उस काम से उनकी बहुत सी अपेक्षाएं हैं, जो पूरी नहीं होतीं। इसलिए दिल में कोई खुशी नहीं होती। जब खुशी न हो, तो व्यक्ति छुट्टी का इंतजार करता है। अब तो 'वीक एंड' हमारी दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। काम और अवकाश के इस चक्र को समझना मजेदार है। छह दिन काम और एक दिन विश्राम, यह अवधारणा ईसाई है। ईसाई धर्मगुरुओं ने माना कि ईश्वर ...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.