नई दिल्ली, जून 15 -- दुनिया में इतने ज्यादा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और तरह-तरह के प्रार्थनाघर हैं, लोगों की लंबी-लंबी कतारें उनमें लगी हुई हैं, करोड़ों का कारोबार चलता है, फिर भी दुनिया परमात्मा की उपस्थिति से रिक्त मालूम होती है। एक आध्यात्मिक सूनापन लगता है, कोई सुकून नहीं दिखाई देता। इतनी हिंसा, इतने उपद्रव क्या भगवत्ता का प्रमाण देते हैं? ओशो का निदान है कि असली परमात्मा से हमारा कोई संबंध नहीं है, हमने उसकी अनगिनत छाया बना ली हैं। तरह-तरह की मूर्तियां बनाकर हम अपनी सांत्वना कर लेते हैं कि यही परमात्मा है। लेकिन ये छाया हैं, इनका मूल जो है, वह तो चेतना है, उसे पकड़ा नहीं जा सकता। हमने प्रार्थना को पहले रख लिया है और परमात्मा को पीछे। प्रार्थना यानी मांग। हमने छाया को पहले रख लिया है और मूल को पीछे। छाया को पकड़ने चले हैं और मूल प...