नई दिल्ली, जुलाई 26 -- शहरों की तेजी और गांवों की बदलती जीवनशैली ने इन परंपराओं को पीछे छोड़ दिया है। वो ''बूरा खाने'' की मिठास, वो मल्हार की सधी हुई तान और नीम की निबोरी की रक्षा सब धीरे-धीरे स्मृतियों में सिमट रही हैं। अलीगढ़ और ब्रज के गांवों में कुछ संगठन, कुछ महिलाएं और कुछ बुजुर्ग अब भी इन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं। ब्रज में सावन सिर्फ मौसम नहीं होता था, यह स्मृति, परंपरा और स्त्री जीवन का उत्सव होता था। अलीगढ़ जैसे शहर में सावन की जो पहचान हुआ करती थी, वो अब सिमटती जा रही है। एक समय था जब सावन के शुरू होते ही बेटियों के ससुराल से मायके बुलावे भेजे जाते थे "सावन जल्दी अईयो रे..." अब न तांगा आता है, न पत्र। मोबाइल पर एक वीडियो कॉल हो जाती है और उत्सव समाप्त। हिन्दुस्तान समाचार पत्र के अभियान बोले अलीगढ़ के तहत टीम ने रोटरी क्लब फ...