नई दिल्ली, अक्टूबर 26 -- आज शाम जब सूर्यदेव अस्ताचलगामी होंगे, तो लोक आस्था अपनी पूरी शुचिता समेटे नदी घाटों, ताल-तलैयों पर उमड़ आएगी। व्रतियों के साथ वहां मौजूद सबके हाथ डूबते हुए सूर्य की ओर जुड़ जाएंगे, सबके होंठों से कल्याण की कामनाएं फूट पड़ेंगी और वहां का सारा वातावरण धूप की सुगंध से गमक उठेगा। छठ पर्व हमारी संस्कृति का संभवत: इकलौता ऐसा आयोजन है, जिसमें अस्त होते सूर्य में भी आस्था जताई जाती है। सनातन काल से इस धरती का जीवन सूरज की गति से संचालित-प्रभावित रहा है। यहां जो कुछ भी है, उसमें सूर्य का बड़ा योगदान है। इसलिए लोक ने एकमात्र उपस्थित देव के रूप में सूर्य देवता की आराधना की। छठ पर्व इस दर्शन को अभिव्यक्त करता है कि हर सुबह की एक शाम तय है और प्रत्येक रात के बाद सवेरा लाजिमी है, इसलिए निराश-हताश होने की आवश्यकता नहीं है। जो जा...