नई दिल्ली, सितम्बर 18 -- राजकुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार शायद ही कोई मुख्य चुनाव आयुक्त कभी सभी राजनीतिक दलों-नेताओं का प्रिय रहा हो, लेकिन अगर बात उस पर 'वोट चोरों' को संरक्षण देने के आरोप तक पहुंच जाए, तो मामले की गंभीरता को समझने में विलंब नहीं किया जाना चाहिए। यहां दांव पर व्यक्ति नहीं, बल्कि एक सांविधानिक संस्था चुनाव आयोग की विश्वसनीयता लगी है, जिसकी एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा रही है। बेशक, यह पहला मौका नहीं है, जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं, मगर पावर प्रेजेंटेशन के जरिये कथित साक्ष्यों के साथ लगाए जा रहे आरोपों को भी निराधार करार देकर चुनाव आयोग जिस तरह अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेना चाहता है, उससे उसकी साख का संकट गहरा रहा है। लगभग एक दशक तक ईवीएम पर संदेह के बाद पिछले एक स...