वाराणसी, नवम्बर 20 -- वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। बीएचयू के हिंदी विभाग में बुधवार को 'उपनिवेशवाद और चिकित्सीय स्वदेशीकरण' विषय पर दिल्ली से आए सामाजिक इतिहासकार डॉ. सौरव कुमार राय का विशेष व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि 19वीं सदी के अंतिम दशक से पश्चिमी चिकित्सा के समानांतर भारत में भी स्वदेशी चिकित्सा पर ध्यान जाना शुरू हुआ जिसे 1890 के आसपास आई प्लेग महामारी ने गति दी। इस समय स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़ा। डॉ. सौरव ने कहा कि 1890 का दशक 'चिकित्सीय राष्ट्रवाद' के उभार का दौर था। इसी दौर में यह भी बहस शुरू हुई कि किस चिकित्सा पद्धति को स्वदेशी माना जाए। इसी प्रयास में होमियोपैथी के स्वदेशीकरण के भी प्रयास हुए और 'अपना वैद्य स्वयं बनो' का नारा दिया गया। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि भारतीय...