नई दिल्ली, अगस्त 13 -- हिमांशु, एसोशिएट प्रोफेसर, जेएनयू इस महीने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के दो दशक पूरे हो रहे हैं। ग्रामीण परिवारों तक पहुंचने के मामले में यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के बाद दूसरी सबसे बड़ी जन-हितकारी योजना है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की पहली सरकार के दौरान लागू इन दोनों ही कानूनों ने सामाजिक सुरक्षा का ढांचा अधिकार-आधारित बनाया। पिछले दो दशक में मनरेगा के क्रियान्वयन में कई बदलाव हुए हैं, मगर सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से यह ग्रामीण भारत में आज भी सबसे अहम योजना बनी हुई है। लाखों गरीबों को रोजगार दिलाने की केंद्र सरकार की पुरानी योजनाओं से मनरेगा तीन मायनों में अलग थी। पहला, चूंकि इसे संसद ने कानून के रूप में पारित किया था, इसलिए यह कानूनी रूप से अधिकार-संपन्न है और ...