नई दिल्ली, जून 15 -- दीपांशु मोहन, प्रोफेसर, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी हाल ही में आई विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2011-12 में भारत में चरम गरीबी 27.1 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में घटकर सिर्फ 5.3 प्रतिशत रह गई। इस दौरान लगभग 27 करोड़ लोग गरीबी-रेखा से ऊपर आ गए हैं। यह आंकड़ा बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह निष्कर्ष गरीबी आंकने के तरीके पर सवाल खड़े करता है। क्या हम भारत में कुछ ही लोगों को गरीब मान रहे हैं या गरीबी के पूरे दायरे को समझने में विफल हो रहे हैं? भारत में गरीबी मापने का पैमाना मुख्य रूप से आय या उपभोग है। यह अभाव के बारे में बहुत कुछ नहीं कहता। तेंदुलकर समिति और बाद में रंगराजन समिति ने उपभोग के तरीके में आ रहे बदलाव को दर्शाने के लिए गरीबी रेखा में सुधार तो किया,पर मानदंड आय को ही बनाए रखा। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम...