नई दिल्ली, दिसम्बर 9 -- लोकसभा मेें वंदे मातरम् पर चर्चा से लोगों को राष्ट्रगीत की गरिमा, ऐतिहासिकता और प्रासंगिकता के बारे में जानकारी मिली। पिछले 150 वर्षों में इस राष्ट्रगीत के उपयोग में कई बार उतार-चढ़ाव देखे गए। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में यह आजादी के दीवानों का जोश बढ़ाने वाला नारा बन गया था। लेकिन आजादी के बाद इसे लेकर तरह-तरह के विवाद पैदा किए जाने लगे। इसकी गरिमा को ठेस पहुंचाई जाने लगी। जिस वंदे मातरम् से पूरे देश में राष्ट्रीयता की लहर पैदा हुई, उसी देश को टुकड़ों में बांटने का जघन्य पाप किया गया। इसके बाद भी इस गीत के साथ अन्याय हुआ और इसे पूरे संदर्भ से काट दिया गया। आलम यह है कि देश में कोई इसे पूरा गाने की स्थिति में नहीं है। ऐसी उपेक्षा असहनीय है। बंग-भंग के खिलाफ हुए आंदोलन के दौरान वंदे मातरम् की गूंज जनमान...
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