दिल्ली, अगस्त 15 -- जब भारत ने 1948 के लंदन ओलंपिक में भाग लिया तो पूरे दल में एक भी महिला खिलाड़ी नहीं थी.78 सालों के बाद भी इस स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आया है.खेल के क्षेत्र में भारत की लड़कियां आज भी संघर्ष कर रही हैं.उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले की रहने वाली अमीषा रावत के लिए पहाड़ों के पथरीले रास्ते उतनी बड़ी बाधा नहीं थे जितना उनके आस पास मौजूद लोग.शारीरिक विकलांगता की वजह से साथ पढ़ने वाले बच्चे न सिर्फ उन्हें लाचारी भरी निगाह से देखते थे बल्कि मजाक भी उड़ाते थे.ऐसे लोगों को जवाब देने के लिए अमीषा ने अपने काम और सफलता को जरिया बनाया.अमीषा ने आगे चलकर न सिर्फ देश में अपने खेल (शॉट पुट) से नाम कमाया बल्कि पेरिस पैरालंपिक के लिए भी क्वालिफाई किया.भारत में आज भी अमीषा जैसी तमाम लड़कियां हैं, जो न सिर्फ खेलों में बेहतर प्रदर्शन कर...