नई दिल्ली, अक्टूबर 15 -- मनुष्य का पूरा जीवन ही यात्रामय है। हम प्राय: दूसरों के दिखाए रास्तों पर ही चलते हैं, लेकिन जब मनुष्य अंतर्मन की यात्रा करता है, तब यहां किसी प्रकार के कोई पदचिह्न नहीं होते। इस यात्रा पर चलने से हम सब प्रकार की आसक्ति से मुक्त हो जाते हैं। श्वास को देखे बिना शरीर को ठीक तरह से समझ नहीं सकते, देख नहीं सकते। शरीर को देखे बिना मन को नहीं देख सकते। मन को देखे बिना आभामंडल को नहीं देख सकते और आभामंडल को देखे बिना प्राण को नहीं देख सकते। जो हमने यात्रा प्रारंभ की है। यात्रा के लिए हमने एक मार्ग चुना है। मार्ग पर हर कोई चलता है। हम भी चलते थे और चल रहे हैं। हर मार्ग पर पदचिह्न होते हैं, किंतु आज हमने एक ऐसा मार्ग चुना है, जिसमें कोई पदचिह्न नहीं है। पदचिह्न होने का अर्थ है- अनुसरण होना। जहां अनुसरण नहीं होता, वहां कोई प...