नई दिल्ली, फरवरी 19 -- दिल्ली हाईकोर्ट ने किशोर प्रेम से जुड़े आपराधिक मामलों में सजा के बजाय समझ को प्राथमिकता देने के लिए सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की वकालत की है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कानून को ऐसे संबंधों को स्वीकार करने के लिए विकसित किया जाना चाहिए जो सहमति से बने हों और जबरदस्ती से मुक्त हों। अदालत ने यह भी कहा कि किशोरों को बिना भय के अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और संबंध बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए। सहमति और सम्मानजनक किशोर प्रेम को मानव विकास का एक स्वाभाविक हिस्सा मानते हुए न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि प्यार एक मौलिक मानवीय अनुभव है। किशोरों को भावनात्मक संबंध बनाने का अधिकार है। कानून को इन संबंधों को स्वीकार करने और उनका सम्मान करने के लिए विकसित किया जाना चाहिए, जब तक कि वे सहमति से बने हों और जबरदस्ती से मुक्...