वाराणसी, अगस्त 17 -- वाराणसी, मुख्य संवाददाता। 'काशी में जन्मे हैं कान्हा मगन महादेव भये, 'भादो के महीनवां भइले देवकी के ललनवां हो मनवां हरषित भइले ना और 'जन्मे हैं कृष्ण कन्हैया बिरज में बाजै बधाइयां हो जैसे पारंपरिक गीतों की गूंज से महादेव की नगरी मध्यरात्रि में गूंज उठीं। मध्यरात्रि निकट आते सनातनी परिवारों में चम्मचों से बजाई जा रही थालियों की थाप पर मुखर होते इन पारंपरिक गीतों और बर्तनों के बजने की ध्वनि पक्के महाल की गलियों में सहज महसूस हुई। तमाम शहर में मंदिरों से घरों तक घंटा, घड़ियाल, डमरू और शंख अनुगूंज अपना प्रभाव छोड़ती रही। काशी का ब्रज चौखम्भा में जीवनलाल की हवेली में मध्यरात्रि से पूर्व मधुराष्टकमं की पंक्तियां 'अधरम मधुरं वदनं मधुरं,नयनं मधुरं हसितं मधुरं...गुंजायमान होने लगीं। ऐसे में जय कन्हैया लाल की, हाथी घोड़ा पालकी....