आगरा, नवम्बर 20 -- देश में ऐसे बच्चों की संख्या बहुत अधिक है जो जन्मजात मूक-बधिर हैं। ये बच्चे काक्लियर इम्प्लांट से बोल और सुन सकते हैं, लेकिन यह बहुत महंगा है। ये बातें गुरुवार को एसएन मेडिकल कालेज के ईएनटी विभाग की कार्यशाला में काक्लियर इम्प्लांट की तकनीक पर चर्चा के दौरान कहीं। इसके साथ ही टेम्पोरल बोन डिसेक्शन लैब स्थापित की है। यहां मुख्य वक्ता दिल्ली से पद्मश्री डॉ. जेएम हंस रहे। वे 3,500 से अधिक काक्लियर इम्प्लांट कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि कई समुदाय में नजदीकी रिश्तेदारी में युवक-युवतियों की शादी की जाती है। ऐसे केस में आनुवंशिक कारणों से जन्म लेने वाले शिशु के मूक-बधिर होने की आशंका बढ़ जाती है। यही कारण है कि भारत में जन्मजात मूक-बधिर बच्चों की संख्या अधिक है। वहीं, छह महीने की आयु में ही काक्लियर इम्प्लांट किया जा सकता है...