नई दिल्ली, जुलाई 17 -- किसी ने सवाल किया है- मैं हमेशा दुविधा में रहता हूं कि उस तक मैं पहुंचने में समर्थ हो सकूंगा अथवा नहीं? दरअसल, लक्ष्य का पूरा विचार ही भ्रमपूर्ण है। तब तुम भविष्य में रहना शुरू कर देते हो और समय है अभी, स्थान है यहां। 'अभी और यहीं' की अपेक्षा 'तुरंत' शब्द अधिक महत्वपूर्ण बन गया है। दुखी बने रहने की पूरी कला ही यही है। यही है वेदना का पूरा आधार। यह तुम्हें विभाजित कर देता है। तुम्हें तुम्हारे वर्तमान यथार्थ से पृथक कर देता है। लक्ष्य अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है और परिणाम कम महत्वपूर्ण हो जाता है, जबकि परिणाम ही असली हैं और लक्ष्य केवल एक सपना है। मैं लक्ष्यों के विरुद्ध हूं। परमात्मा एक लक्ष्य नहीं है, सत्य को पाना कोई लक्ष्य नहीं है। सत्य तो पहले से ही यहां हैं। यदि तुम भी यहीं हो, तब मिलना होगा ही। लेकिन तुम यहां हो...
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