कानपुर, दिसम्बर 11 -- सरसौल। महाराजपुर के महुआ गांव स्थित एक इंटर कालेज में गुरुवार को काव्य की गंगा प्रवाहित हुई तो हर मन उसमें गोते लगाने लगा। साहित्य समागम की लहरों के झोंको से लोग मुसुकुराते रहे। कवि डा. राम नरेश चौहान ने मां की महिमा का गान किया तो लोग भावुक हो गए। वहीं सुरेंद्र गुप्त सीकर ने बेटी को विधाता का वरदान बताया तो लोग वाहवाही कर उठे। कवि धीरपाल सिंह (धीर) ने गेहूं की बाली चने की फलिया गन्ने वाले खेत धीरे धीरे फिसल रहे है, ज्यों मिट्टी से रेत..प्रस्तुत किया। तो वहीं कवि डा राम नरेश चौहन ने मां और एक बच्चे की कविता मां खुद कांटों पर सोई लेकिन अपने बच्चों को फूलों पर सुलाया...सुनाया। वहीं मनीष रंजन सरल मुक्तक के माध्यम से ज़ख्म कितने भी मिले हंस हंस के सहना चाहिए, हों लगे प्रतिबंध लेकिन सच ही कहना चाहिए, जोड़कर कर कर रहा है ए...